वफ़ा अव्वल थी ज़माने में
गुज़ार दी उसने आजमाने में
एक उम्र लगा दी तुमने
जाने में वापस आने में
कोई फ़र्क ही नहीं लगता
खोने में तुमको पाने में
नौकरी थी यूं कटती गई
सिक्के कमाने उम्र गँवाने में
सुकून है जबसे छोड़ दिया
परखना जाने में अनजाने में
खामोश बैठे पर बहुत बोले
सब बात रह गई फ़साने में
छत के नीचे बड़ी दूरियाँ हैं
वक्त लगता है आने जाने में ।
एक दोस्त की कलम से…
बात करते हैं..
ज़रा ठहर नज़र मिला, बात करते हैं।
जिगर है सामने आ, बात करते हैं।
झूठी कोई तारीफ कब तलक होगी,
आ थोड़ी शराब पिला, बात करते हैं।
तकल्लुफ उम्र भर चलता ही रहेगा,
कुछ तो कर गिला, बात करते हैं।
मासूम आखों का अब एतबार नहीं,
यकीन कुछ और दिला, बात करते हैं।
मसला तो सब तेरा मेरा अपना है,
हटा औरों का काफिला, बात करते हैं।
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